मंगलवार, 27 सितंबर 2016

विचार चिंतन -संजा (छाबड़ी)
दोस्तों आज द्वितीया तिथि है याने संजा का तीसरा दिन ....संजा जहाँ वयक्ति को विचारो और व्यवहार में समष्ठि के साथ जोड़ती वही व्यक्तिक अंतर्मन की चेतना को जागृत कर आत्मार्पित करने की साधना भी सिखाती है ...

आज का मांडना- पांच पांचा और बिजोरो
आज का गीत - संजा का उद्देश्य क्या है?

"इनी चक्की मs वाचा छै वाचा छे
कोण भाई वीरो वाचा छे
चाँद सूरज भाई वीरो वाचा छे
चाँद सूरज भाई की बैरो खs पैरतs नी आवs
संजा नणद पैरावै छे
संजा नणद को ऊंचो नाक नीचो नाक मोतिया से माँग भरावे छे"

गीत का भाव- जीवन के जन्म मृत्यु के क्रम की चक्की के बोलने -बाचने में किस भाई को बाचा (पढ़ा) जाय चाँद और सूरज भाई को पढ़ा जाय। चाँद और सूरज की पत्नियो को पहनने ओढ़ने का तरीका नहीं आता वो संजा ननद को सिखाना है संजा ननद की नाक ऊँची होगी या नीची या मोतियो से भरी मांग होगी ये उसके स्वयं पर निर्भर करता है।

गीत का भाव- आज बिज की तिथि याने द्वितीय...
दो याने जोड़ या कहे युग्म करना या युग्मित होना पञ्च तत्व के उन पांचो के साथ उस दिव्य बीज तत्व की संतति बिजौरे को पाना है ।बिजोरा वो फल होता है जो 16 संस्कारो में पुंसवन संस्कार में गोद भराई के समय भावी माता की गोदी में रखा जाता है ....पर कैसे ?
संजा कहती है चाँद और सूरज रूपी सुख और दुःख ,सम और विषम दोनों परिस्थितियों से भातृ भाव रख कर आत्म अधिष्ठात्री 'भाभी' को अपने स्वरूप में ढाल कर आनन्द भाव में समाहित कर पांच तत्वों के युग्मन से नवीन संतति के आगत का स्वागत और विगत का सन्मान करना ...यही है संजा का उद्देश्य .....
निमाड़ की बाला के अंतर्मन की अन्तरिक्षीय यात्रा के अगले पड़ाव में फिर मिलेगे ... धन्यवाद।

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