मंगलवार, 27 सितंबर 2016

 संजा(छाबड़ी)
दोस्तों आज तृतीया तिथि याने संजा का चतुर्थ दिवस है संजा जहाँ जीवन के मानसिक संघर्षो में आने वाले अंतर द्वन्दों की उलझनों को सुलझाने और विवेकशील होने की कला सिखाती है जीवन में हास परिहास भी घोलती है
आज का मांडना -घेवर
आज का गीत - मानसिक उत्थान कैसे
आज का गीत- म्हारा आँगण मs केल को झाड़
चढ़ जो ऊँची सी डाली चढ़ जो नीची सी डाली
म्हारा वीरा खs तिस लगी लाई जाऊ सोना की झारी
महाराजेठ खस तिस लागी लई जाऊ फुटलो सो लोटो
म्हारा वीर खs भूक लागी लाई जाऊ हल्वो पूरी
म्हारा जेठ खs भूक लागी लाई जाऊ सुखो सो रोटो.....
गीत का अर्थ- भाई को प्यास लगी तो सोने की झारी से पानी पिलाऊँ और जेठ को फुटले लोटे से
भाई के लिए हलवा पूरी और पति के भाई के लिए सुखी रोटी ...
गीत का भाव - संजा जीवन के संघर्ष में मानसिक अन्तर द्वंदों से परे सम्यक विवेक जागृत करती है घेवर मांडना में कुण्डलीकृत आकृति बनाई जाती है जो जो मानसिक उलझनों को परिलक्षित करती है जहाँ घेवर का अर्थ घेरना (बनाना) होता है वहीँ घेवर वो राजसी मिष्ठान होता है जिसको बनाने की अपनी विशिष्ठ शैली होती है जो पुंसवन संस्कार में आवश्यकरूप से भावी माता को दिया जाता है...संजा प्रवत्तियो के संवर्धन में अच्छी व् कम अच्छी प्रवत्ति के मंथन में विवेकशील कर्मो का वो पान करवाती है जो जीवन में घेवर सा हो सत् प्रवत्ति को संवर्धित व् अभिपोषित करता है ।
निमाड़ की बाला संजा के मानसिक सफर में फिर मिलेगे सह यात्री बनने का धन्यवाद .......।

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