शुक्रवार, 10 अक्तूबर 2014

singaji-nimad ke sant shiromani ( सिंगाजी-निमाड़ के संत शिरोमणी)

निमाड़ के संत -

"सिंगाजी"-निमाड़ के संत शिरोमणी(sant singaji)
भारतीय साहित्य में भक्ति काल को अध्यात्म का वांग्मय स्वर्ण युग कहा जाता है।सुर,तुलसी,मीरा कबीर रहीम रैदास आदि।
देश में भक्ति आन्दोलन में अनेक संत हुए छोटी छोटी जगह सगुण-निर्गुण भक्ति धारा में भक्ति की काव्य धारा प्रस्फुटित होने लगी।
निमाड़ में लगभग 600 सो साल पहले ऐसे ही निर्गुणी धारा के परम तेजस्वी संत सिंगाजी हुए जिन्होंने निमाड़ की अध्यात्मिक जीवन की धारा का रुख ही मोड़ दिया।
सिंगाजी एक किसान पशुपालक थे इनका जन्म ग्राम खजुरी में संवत 1576 में हुआ ।सिंगाजी जाति से गवली थे। सिंगाजी के पिता का नाम भीमाजी व माता गौरा बाई था ,भाई लिम्बजी थे। सिंगाजी की किसन बाई नाम की बहिन थी कालूजी महाराज उनके जेष्ठ पुत्र थे जिन्होंने उनके कार्य को प्रशस्त किया और उनकी अध्यात्मिक विरासत को शिष्यता प्रदान की।
सिंगाजी ने लगभग 1100 सो पदों की रचना की जिसमे खेती किसानी के मौलिक प्रतिको का सार्धक प्रयोग किया।"खेती खेड़ो हरी नाम की "लोकप्रिय पद है ।
प्रति वर्ष शरद पूर्णिमा पर संत सिंगाजी के नाम से ग्राम सिंगाजी हरसूद में मेला लगता है।
सिंगाजी के पदों में निर्गुणी मस्ती है फक्कड़ पन है वही अनहद की नाद है सबद की झंकार है त्रिकुटी महल शुन्य है नयन है वही भरपूर अखंड ज्योति देदीप्यमान है। उनके पदों में उनका साहब बिना देह का है-
"रूप नहीं रेखा नहीं कुल गोत रे
बिन देहि का साहब मेरो झिलमिल मिल देखू रे"............
सिंगाजी कहते है -
"पाणी पवन से पातणा ज्यों सूर्या को घाम
ज्यों शशि का चाँदणा ऐसो मेरो राम"
मेरा राम (इष्ट )पानी और हवा से पतला है,सूर्य की तरह तेजस्वी है तो चाँद की चांदनी की तरह शीतल है।
सिंगाजी ने जहाँ मिरदिंग को लोकवाद्य की लोकप्रियता दिलाई वाही झाँझ की झंकार को अनाहद नाद के रूप में घर-घर तक पहुचाया, आज भी रात-रात भर सिंगाजी के लोकपदो को गाया जाता है।ऐसे निर्गुणी धारा के निमाड़ के संत शिरोमणी सिंगाजी आज भी लोकगीतों की गायन मंडलियो में निमाड़ की रगों रगों में बसते है।

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