निमाड़ का माडना |
निमाड़ में माड़ने का रिवाज है माडना जिसमे दीवारों पर या जमीं पर कई तरह की आकृति बनाई जाती है जिसे माडना कहते है .माड़ने जन्म से मृत्यु तक विशेष बनाए जाते है जैसे जन्म के६वे दिन " छट्टी माता"जच्चा के पलंग के पास , १० वे दिन न्हाव्न्दी (शुद्धि स्नान ) स्नान घर की दीवाल पर , घर में'' दसतून" का माडना बनाते है .१३वे दिन जलवाय का मडना बनाते है. शादी में विरित के रूप में, कुलदेवी के रूप में, दीवार मात्रा के रूप में भवरली के रूप में प्रवेश के दरवाजे पर बनाए जाते है माडना लोक पर्व पर विशेष बनाए जाते है जैसे चैत्र पर माता के माड़ने अशटमी नवमी पर ,नाग पंचमी पर नाग माडना ,जिरोती अम्मावासाया पर जिरोती के माड़ने ,विजय दशमी पर दशेरा का माडना , दीवाली पर अष्ट कमल बनाए जाते है लोक पर्व के रूप में संजा के माड़ने का बड़ा महत्त्व है लोक व्रत के रूप में ऋषि पंचमी पर सप्त ऋषि के माडना ,हल छठ पर पलाश के पत्तो पर माडना ,सीतला सप्तमी पर हाथ के छापे का माडना बना कर ईशवर की आराधना की जाती है जिन्दगी को चित्रों के रूप में बना कर दीवार, ज़मीन,पट्टे माडना बनाया जाता है माडना बनाने का तरीका भी अलग अलग होता है जैसे जन्म के माड़ने हल्दी को पानी में घोल कर रुई के फोए से बनाते है तो देवी के माड़ने कुमकुम से बनाते है दीवाली के माड़ने खड़िया मिटटी से बनाए जाते है.जिन्दगी के सुख दुःख में जीने की चाह बढ़ाते व जीने की राह दिखाते है निमाड़ी लोगो को माड़ने.
'माड़ने के बिना अधूरी है जिन्दगी''
और जिन्दगी है '' माडना ''सासों के इस माड़ने को अच्छा बनाए यही कमाना................
और जिन्दगी है '' माडना ''सासों के इस माड़ने को अच्छा बनाए यही कमाना................
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