संजा की आज की तिथि सप्तमी और अष्टमी है संजा स्त्री के सृजनात्मक भाव को पूर्ण जिम्मेदारी से वहन करना सिखाती है व् सम्पूर्ण मानवजाति को सुख सौभाग्य समृद्धि प्रदान करती है......
आज का मांडना सात्यो, सप्तऋषि तारा अष्टमी को अष्ट फूल
आज का गीत - नानी सी गाड़ी रूळ कती रूळकती जेका मs बठी संजा बाईं घाघरो
घम काउती जाय,चुडिलो चमकाउती जाय, बिछिया बजावति जाय बिंदिया झळकाउती जाय .....
गीत का अर्थ - छोटी सी गाड़ी लुढ़क रही है जिसमे संजा बाई बैठी है उसका घाघरा बहुत ही सुन्दर घमक रहा ह हाथो का चुड़ा चमक रहा है पैरो की बिछिया बज रही है माथे की बिंदिया छलक रही है ....
गीत का भाव - संजा की गाड़ी रूपी जीवन दिन और रात के रूप में लुढ़क रही है उसमें वो जीव तत्व संजा बैठी है जो अष्ठ लक्ष्मी (सुख ,सौभाग्य समृद्धि )से परिपूर्ण है...
दोस्तों संजा स्त्री के सृजनात्मक यात्रा का संकल्पित सोपान है जहाँ स्वस्तिक विशिष्ट शुभ कार्य का आरम्भ है वही ज्ञात हो सप्त ऋषि वही ऋषि गण है जिनसे सम्पूर्ण मानवजाति को कुल और गौत्र की प्राप्ति हुई है गौत्र याने गुणसूत्र और और उन्ही गुणसूत्रों की सुरक्षा संरक्षण की महत्वपूर्ण जिम्मेवारी की सिख संजा सिखाती है और स्वयं को सप्तऋषी गण की साधना उपासना में अर्पित करती है और गुणो की शुद्धता बनाये रखने के लिए आत्मसंकल्पित होती है, यहां ये बताना आवश्यक है की संजा कुँवारी कन्याओ का उत्सव है वही सप्तऋषी रजस्वला स्त्रियों का लोक व्रत है..... अष्ट लक्ष्मी के लावण्य से सुशोभित संजा की गाडी आनन्द उत्साह से ससुराल जाने को अभिलाषित है ....
संजा के ससुराल अभिगमन की आद्यात्मिक यात्रा में आपके गाड़ीवान बनने के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद.......
आज का मांडना सात्यो, सप्तऋषि तारा अष्टमी को अष्ट फूल
आज का गीत - नानी सी गाड़ी रूळ कती रूळकती जेका मs बठी संजा बाईं घाघरो
घम काउती जाय,चुडिलो चमकाउती जाय, बिछिया बजावति जाय बिंदिया झळकाउती जाय .....
गीत का अर्थ - छोटी सी गाड़ी लुढ़क रही है जिसमे संजा बाई बैठी है उसका घाघरा बहुत ही सुन्दर घमक रहा ह हाथो का चुड़ा चमक रहा है पैरो की बिछिया बज रही है माथे की बिंदिया छलक रही है ....
गीत का भाव - संजा की गाड़ी रूपी जीवन दिन और रात के रूप में लुढ़क रही है उसमें वो जीव तत्व संजा बैठी है जो अष्ठ लक्ष्मी (सुख ,सौभाग्य समृद्धि )से परिपूर्ण है...
दोस्तों संजा स्त्री के सृजनात्मक यात्रा का संकल्पित सोपान है जहाँ स्वस्तिक विशिष्ट शुभ कार्य का आरम्भ है वही ज्ञात हो सप्त ऋषि वही ऋषि गण है जिनसे सम्पूर्ण मानवजाति को कुल और गौत्र की प्राप्ति हुई है गौत्र याने गुणसूत्र और और उन्ही गुणसूत्रों की सुरक्षा संरक्षण की महत्वपूर्ण जिम्मेवारी की सिख संजा सिखाती है और स्वयं को सप्तऋषी गण की साधना उपासना में अर्पित करती है और गुणो की शुद्धता बनाये रखने के लिए आत्मसंकल्पित होती है, यहां ये बताना आवश्यक है की संजा कुँवारी कन्याओ का उत्सव है वही सप्तऋषी रजस्वला स्त्रियों का लोक व्रत है..... अष्ट लक्ष्मी के लावण्य से सुशोभित संजा की गाडी आनन्द उत्साह से ससुराल जाने को अभिलाषित है ....
संजा के ससुराल अभिगमन की आद्यात्मिक यात्रा में आपके गाड़ीवान बनने के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद.......
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