शुक्रवार, 12 अगस्त 2022

अपणो राष्ट्रीय ध्वज -तिरंगों

राम राम भाई न s होणी जसो अपण सब न ख मालूम छे की अपण अपणी आजादी का पछत्तर बरस ख s अमृत महोत्सव का रूप म s मनाई रयाज न s सब न s सी अपील भी करी ज s अपणी सरकार न s की हर घर प s अपण आपणी स्वतंत्रता को संप्रभुता का प्रतीक झंडा ख s घर की छत प s फेरावा   तो आज अपण तिरंगा पज s वात विचार करा क्योकि इत्तो आसान भी नई होतो है न तो आजादी हासिल करनू न झंडो बनावनु 22 जुलाई 1947 ख s संविधान सभा न s वर्तमान को तीन रंग को तिरंगों झंडा ख s राष्ट्रीय ध्वज का रूप म s अपणायो पण एकी यात्रा का बारा म भी बात कारागा।
अभी इत्तो ज s हम चल्या तम बठो...राम राम।

शुक्रवार, 31 दिसंबर 2021

ठंड का दिन

ठंडी लाग् रातड़ी दुई गोदड़ी की दूण
मीठी-मीठी  राबड़ी  घीव मs लपट्या प्राण।
दादा बैठ्या तापणी दुई लक्कड़ की गौड़,
चूल्हा ऊपर चासणी दूध -जलेबी जोड़।
दांड़या धाणी लापसी मण भेळी को गुड़
  लिम्बु बोर  इमली चटनी चाटो लूण।
 मिरी मस्की तेल मs लई  कांदा की फांक
 मका- ज्वार का रोटळा भाजी अम्माडी रांद ।
मगरा उप्पर कागलो आया दुई मीमांन,
हऊ भी भुको नी रवु तू क्यों भुको जाय।
राम को देणु राम को खाणु फिर केको  गुम्मान ,
 हऊ छे थारो मेजबान तू म्हारो मीमांन।
-सुनीता इंदौर

शुक्रवार, 1 अक्तूबर 2021

संझा गीत

 संजा गीत इस प्रकार है_


1) संजा गीत -संजा तू थारा घर जा,

 संजा तू थारा घर जा

थारी माय मारेगी की कुटेगी,

चाँद गयो गुजरात 

की हरणी का बड़ा बड़ा दाँत,

 की थारा पोर्या पारी डरपे ला की डर पेला...... 

 संजा तू थारा घर जा,

थारी माय मारेगी की कुटेगी......


२) संजा का सासरs जावा गाs की खाटो रोटो खावागा s

संजा की सासु सोकेली रस्ते चलते मारेगी

 अस्सी कस्सी मारे दारी की चार गुलाटी खाएगी ..........


3) संजा बाई का लाड़ा जी लुगड़ो लाया जाड़ाजी

अस्सा कसा लाया दारी का लावता गोट किनारी का 

लाया था पर लाया था रास्तो भूली आया था.....


4)  आमली  का झाड़ निच 

 बाजा बाजे जी 

छोटो सो वीरो 

ले घोडी नचावे जी 

छोटी सी  बेना 

ले फूलडा वघावे जी 

आमली का  झाड़ नींच 

 बाजा बाजे जी।


5) काजल टिकी लो भई

काजल टिकी लो 

काजल टिकी लई ने म्हारी 

संजा बाई ने दो

संजा बाई को सासरो सांगा में 

पदम्पधारया बड़ी अजमेर

राम थारी चाकरी गुलाम म्हाको देस

छोडो म्हाकी चाकरी

पधारो आपका देस....।

6)  गाड़ी नीचे जीरो बोयो

  सात सहेल्यां जी,

अणि जीरा की साग बनाई

सात सहेल्यां जी

साग बनाई ने वीरा जी ने मेलि

सात साहेल्या जी

विराजी के म्हणे खाटी खाटी लागे

सात सहेल्यां जी

वाई खीर मैं भैस ने दे दी

सात सहेल्यां जी

भैस ऐ लई म्हने दुधडो दी दो

सात सहेल्यां जी

अणि दूध की खीर बनाई

सात सहेल्यां जी

खीर बनाई ने वीरा जी ने मेली

सात सहेल्यां जी

वीरा जी के म्हणे मीठी मीठी लागे

सात सहेल्यां जी ,

वीरा जी ले म्हने चुनर ओढाई

सात सहेल्यां जी

चुन्नड़ ओडी पाणी चाल्या

सात सहेल्यां जी

पाणी चाल्या काटों भाग्यो

सात सहेल्यां जी

काटो भाग्यो खून निकल्यो

सात सहेल्यां जी

खून निकल्यो चुनर से पूछ्यो

सात सहेल्यां जी

चुनर के तो धब्बा पड़ग्या

सात सहेल्यां जी

वाई चुनर में धोबी ने दी दी

सात सहेल्यां जी

धोबी इ लई म्हने धोई धोई दे दी

सात सहेल्यां जी 

वाई चुनर में रंगरेज ने दे दी

सात सहेल्यां जी

रंगरेज लाइ म्हने रंगी रंगी देदी...।

7) कहाँ से लाउ भई हरो हरो गोबर

किसान घरे जऊं

व्हां से लाउं

ले भई संजा हरो हरो गोबर,

संजा तो मांगे

लाल पीला फुलड़ा

कहाँ से लाऊं भई 

हरा पीला फुलड़ा

माली घरे जऊ

व्हां से लऊं

ले भई संजा हरा पीला फुलड़ा।

संजा तो मांगे

दूध पतासा

कहाँ से लउं भई

हलवाई घरे जाऊ

व्हां से लाउं

के भई संजा

दूध पतासा...।

8)  संजा तू बड़ा बाप की बेटी

तू खाय खाजा रोटी

तू पेरे माणक मोती

रजवाड़ी चाल चाले

मालवा री बोली बोले

संजा  सेवरो  ले....

माथे बेवडो रे...।

9) छोटी सी गाडी लुढ़कती जाय,लुडकती जाय

जिमें बैठ्या संजा बाई ,संजा बाई

घाघरो घमकाता जाय

चुड़लो चमकता जाय

बाई जी की नथनी झोला खाय झोला खाय...।


10) म्हारा अंगना में मेंदी को झाड़,

दो-दो पत्ती चुनती थी

गाय को खिलाती थी, गाय ने दिया दूध -दूध,

दूध की बनाई खीर-खीर,

खीर खिलाई संजा को, संजा ने दिया भाई -भाई,

भाई की हुई सगाई, सगाई से घर मे आई भौजाई भौजाई...।


11) म्हारो गुल्यो म्हारो गुल्यो सेरी न मs जाय रे भाई सेरी मुड़यो कांटो नावी घर जाय रे भाई ,

नावी नs दिया फुलड़ा देव खs चढाव न जाय रे भाई,

 देव न दिया लाड़वा,मगरs बठ्यो कागलो काव कांव करतो जाय रे भाई

पाय मs बन्ध्या मुस्ळा धमधम करता जाय 

हाथ म बन्ध्या घुघरा छम छम करता जाय

कान म बांध्या सूपड़ा फटफट करता जाय

आँख म बांधी कवड़ी कटकट करती जाय

नाक म बांधी उन्दरी चाउ चाउ करती जाय रे भाई...।


12) इनी चक्की मs वाचा छै वाचा छे

कोण भाई वीरो वाचा छे वाचा छे

चाँद सूरज भाई वीरो वाचा छे

चाँद सूरज भाई की बैरो खs पैरतs नी आवs

संजा नणद पैरावै छे

संजा नणद को ऊंचो नाक नीचो नाक मोतिया से माँग भरावे छे...।

13)गाड़ी नीचे वटलो वायो देख संजा सोलरिया 

वणी वटला के फूल आया देख संजा सोलरिया  

वणी फूल के फली आयी देख संजा सोलरिया 

वणी फली की मने सब्जी वणई देख संजा सोलरिया 

वणी सब्जी ने मने सासुजी के मेली 

सासुजी के मने सब्जी खाटी खाटी लगे 

वा सब्जी मने भूरी भैंस के आगे फेंकी 

देख संजा सोलरिया 

वणी भूरी भैंस ने दूध दीदा 

देख संजा सोलरिया  

वणी दूध की खीर बनाई देख संजा सोलरिया 

वा खीर मने संजा ने खिलाई 

देख संजा सोलरिया ..।

14)चिड़ी - चिड़ी कोट पर चढ़कर देख 

कौन सा विरो आया 

सूरज विरा आया 

गाड़ी घोड़ा लाया 

गाड़ी में भाभी 

भाभी के माते पालनो 

पालनो में नानो 

नाना माते  टोपी 

टोपी में हीरो 

हीरो गयो मंगल में 

संजा होदे जंगल में 

चिड़ी - चिड़ी कोट पर चढ़कर देख 

कौन सा विरो आया 

चंद्र  विरा आया 

गाड़ी घोड़ा लाया 

गाड़ी में भाभी 

भाभी के माते पालनो 

पालनो में नानी  

नानी  माते टोपी 

टोपी में हीरो 

हीरो गयो मंगल में 

संजा होदे जंगल में ...।

15)  *संजा गीत* 

 मै गोबर  सड़क पे खड़ी 

मुझे बतलादो संजा  गली 

अजी वई है गली अजी वई है गली 

मैं फूल ले के सड़क पे खड़ी 

मुझे बतलादो संजा  गली 

अजी वई है गली अजी वई है गली 

मैं अगरबत्ती ले के सड़क पे खड़ी 

मुझे बतलादो संजा  गली 

अजवई है गली अजी वई है गली 

मैं प्रसाद ले के सड़क पे खड़ी 

मुझे बतलादो संजा  गली 

अजवई है गली अजी वई है गली  ..

16) अतल बीतल  की डोरिया न 

बेतल  की तलवार जी 

कोन्सो वीरो बाग लगावे 

कोनसी बेना सींचे जी 

चाँद सूरज भई वीरो बाग लगावे 

संजा बेना सीचे जी ...।

17)म्हारा आँगन मs गाय ऊबी

वा गाय भल्ली थी भई आंगण पोयटो कर्यो थो

वो पोयटो भल्लो थो भई

गेहूड़ा सुखाया था वो गेहूड़ा भल्ला था भई

घट्टी म धमकाया था वा घट्टी भल्ली थी भई

लाडूला लड़ाया था वो लाडूला भल्ला था भई

पियर पोचाया था वो पियर भल्लो थो भई

चुनर  ओढाई थी वा चुनर भल्ली थी भई

बारा मईना चली थी नs फुरफन्दी मs फटी गई...।


संजाबाई के गीत

 निमाड़ में संजा पर्व _

      निमाड़ में छाबड़ी (संजा फूली) का लोक पर्व अनंत चतुर्दशी के दूसरे दिन से याने अश्विन माह की पूर्णिमा तिथि से सर्वपितृ अमावस्या तक निमाड़ की किशोरी बालिकाओ द्वारा इस त्यौहार को मनाया जाता है।

संजा भित्ति चित्र 'मांडना' और लोक गीतों का संगम है जिसमे बालिकाए दीवाल पर या पट्टे पर गोबर से हरदिन एक निश्चित आकृति बनाती है संध्या के समय गॉव की सभी सखी सहेलियां एकठ्ठा होकर घर घर जाकर गीत गाती है और आरती व् प्रसाद बाँटती है, प्रसाद बाँटने से पहले बताना पड़ता है कि आज प्रसाद में क्या है जिसे 'ताड़ना' कहते है ताड़ना के बाद भोग भी गीत गाकर लगाया जाता है फिर प्रसाद का वितरण होता है ।

 मांडने की आकृतियों में घुघरो नगाड़ा, पंखा, केले का झाड़, चौपड़ दीवाली झारी, बाण्या की दुकान, बाजूर, किल्लाकोट होता है। 'संजा' क्रम में पहले दिन चाँद तारा, पाँच पाचे या पूनम पाटला, दूसरे दिन इन्हें मिटाकर बिजौर, तीसरे दिन घेवर, चौथे दिन चौपड़ और पंचमी को 'पाँच कुँवारे' बनाए जाते हैं। लोक कहावत के मुताबिक जन्म से छठे दिन विधाता किस्मत का लेखा लिखते हैं, जिसका प्रतीक है छबड़ी। सातवें दिन सात्या (स्वस्तिक) या आसमान के सितारों में सप्तऋषि, आठवे दिन 'अठफूल', नवें दिन डोकरा-डोकरी और दसवें दिन वंदनवार बाँधते हैं। ग्यारहवें दिन केले का पेड़ तो बारहवें दिन लड़ता झड़ता मोर-मोरनी या जलेबी की जोड़ माँडती है। तेरहवें दिन शुरू होता है किलाकोट, जिसमें 12 दिन बनाई गई आकृतियों के साथ नई आकृतियों का भी समावेश होता है।

यही क्रम सोलह दिनों तक चलता हैँ पहले दिन की बनी आकृति की जगह नयी आकृति बनाइ जाती है सोलहवें दिन सर्व पित्र अमावस्या को सभी सुखाई आकृतियो को टोकनियो में इकट्ठा कर गाँव के जलाशय में विसर्जन कर दिया जाता है ककड़ी और हलवे का प्रसाद बाँटती है वापस लौटते समय भी सभी सहेलिया  खाली टोकनियो से खेल खेलती है व् हारी खिलाड़ी को कहावत में 'हाड़या राव'जी(काला कौआ) उसके भावी पति के नाम से चिढ़ाती है और इस तरह संजा के लोक पर्व की समाप्ति हो जाती है।

संजा गीत इस प्रकार है_


१) संजा गीत -संजा तू थारा घर जा,

 थारी माय मारेगी की कुटेगी,

चाँद गयो गुजरात 

की हरणी का बड़ा बड़ा दाँत,

 की थारा पोर्या पारी डरपे ला की डर पेला...... 

 संजा तू थारा घर जा,

थारी माय मारेगी की कुटेगी......


२) संजा का सासरs जावा गाs की खाटो रोटो खावागा s

संजा की सासु सोकेली रस्ते चलते मारेगी

 अस्सी कस्सी मारे दारी की चार गुलाटी खाएगी ..........


3) संजा बाई का लाड़ा जी लुगड़ो लाया जाड़ाजी

अस्सा कसा लाया दारी का लावता गोट किनारी का 

लाया था पर लाया था रास्तो भूली आया था.....


4)  आमली  का झाड़ निच 

 बाजा बाजे जी 

छोटो सो वीरो 

ले घोडी नचावे जी 

छोटी सी  बेना 

ले फूलडा वघावे जी 

आमली का  झाड़ नींच 

 बाजा बाजे जी।


5) काजल टिकी लो भई

काजल टिकी लो 

काजल टिकी लई ने म्हारी 

संजा बाई ने दो

संजा बाई को सासरो सांगा में 

पदम्पधारया बड़ी अजमेर

राम थारी चाकरी गुलाम म्हाको देस

छोडो म्हाकी चाकरी

पधारो आपका देस....।

6)  गाड़ी नीचे जीरो बोयो

  सात सहेल्यां जी,

अणि जीरा की साग बनाई

सात सहेल्यां जी

साग बनाई ने वीरा जी ने मेलि

सात साहेल्या जी

विराजी के म्हणे खाटी खाटी लागे

सात सहेल्यां जी

वाई खीर मैं भैस ने दे दी

सात सहेल्यां जी

भैस ऐ लई म्हने दुधडो दी दो

सात सहेल्यां जी

अणि दूध की खीर बनाई

सात सहेल्यां जी

खीर बनाई ने वीरा जी ने मेली

सात सहेल्यां जी

वीरा जी के म्हणे मीठी मीठी लागे

सात सहेल्यां जी ,

वीरा जी ले म्हने चुनर ओढाई

सात सहेल्यां जी

चुन्नड़ ओडी पाणी चाल्या

सात सहेल्यां जी

पाणी चाल्या काटों भाग्यो

सात सहेल्यां जी

काटो भाग्यो खून निकल्यो

सात सहेल्यां जी

खून निकल्यो चुनर से पूछ्यो

सात सहेल्यां जी

चुनर के तो धब्बा पड़ग्या

सात सहेल्यां जी

वाई चुनर में धोबी ने दी दी

सात सहेल्यां जी

धोबी इ लई म्हने धोई धोई दे दी

सात सहेल्यां जी 

वाई चुनर में रंगरेज ने दे दी

सात सहेल्यां जी

रंगरेज लाइ म्हने रंगी रंगी देदी...।

7) कहाँ से लाउ भई हरो हरो गोबर

किसान घरे जऊं

व्हां से लाउं

ले भई संजा हरो हरो गोबर,

संजा तो मांगे

लाल पीला फुलड़ा

कहाँ से लाऊं भई 

हरा पीला फुलड़ा

माली घरे जऊ

व्हां से लऊं

ले भई संजा हरा पीला फुलड़ा।

संजा तो मांगे

दूध पतासा

कहाँ से लउं भई

हलवाई घरे जाऊ

व्हां से लाउं

के भई संजा

दूध पतासा...।

8)  संजा तू बड़ा बाप की बेटी

तू खाय खाजा रोटी

तू पेरे माणक मोती

रजवाड़ी चाल चाले

मालवा री बोली बोले

संजा  सेवरो  ले....

माथे बेवडो रे...।

9) छोटी सी गाडी लुढ़कती जाय,लुडकती जाय

जिमें बैठ्या संजा बाई ,संजा बाई

घाघरो घमकाता जाय

चुड़लो चमकता जाय

बाई जी की नथनी झोला खाय झोला खाय...।


10) म्हारा अंगना में मेंदी को झाड़,

दो-दो पत्ती चुनती थी

गाय को खिलाती थी, गाय ने दिया दूध -दूध,

दूध की बनाई खीर-खीर,

खीर खिलाई संजा को, संजा ने दिया भाई -भाई,

भाई की हुई सगाई, सगाई से घर मे आई भौजाई भौजाई...।


11) म्हारो गुल्यो म्हारो गुल्यो सेरी न मs जाय रे भाई सेरी मुड़यो कांटो नावी घर जाय रे भाई ,

नावी नs दिया फुलड़ा देव खs चढाव न जाय रे भाई,

 देव न दिया लाड़वा,मगरs बठ्यो कागलो काव कांव करतो जाय रे भाई

पाय मs बन्ध्या मुस्ळा धमधम करता जाय 

हाथ म बन्ध्या घुघरा छम छम करता जाय

कान म बांध्या सूपड़ा फटफट करता जाय

आँख म बांधी कवड़ी कटकट करती जाय

नाक म बांधी उन्दरी चाउ चाउ करती जाय रे भाई...।


12) इनी चक्की मs वाचा छै वाचा छे

कोण भाई वीरो वाचा छे वाचा छे

चाँद सूरज भाई वीरो वाचा छे

चाँद सूरज भाई की बैरो खs पैरतs नी आवs

संजा नणद पैरावै छे

संजा नणद को ऊंचो नाक नीचो नाक मोतिया से माँग भरावे छे...।

13)गाड़ी नीचे वटलो वायो देख संजा सोलरिया 

वणी वटला के फूल आया देख संजा सोलरिया  

वणी फूल के फली आयी देख संजा सोलरिया 

वणी फली की मने सब्जी वणई देख संजा सोलरिया 

वणी सब्जी ने मने सासुजी के मेली 

सासुजी के मने सब्जी खाटी खाटी लगे 

वा सब्जी मने भूरी भैंस के आगे फेंकी 

देख संजा सोलरिया 

वणी भूरी भैंस ने दूध दीदा 

देख संजा सोलरिया  

वणी दूध की खीर बनाई देख संजा सोलरिया 

वा खीर मने संजा ने खिलाई 

देख संजा सोलरिया ..।

14)चिड़ी - चिड़ी कोट पर चढ़कर देख 

कौन सा विरो आया 

सूरज विरा आया 

गाड़ी घोड़ा लाया 

गाड़ी में भाभी 

भाभी के माते पालनो 

पालनो में नानो 

नाना माते  टोपी 

टोपी में हीरो 

हीरो गयो मंगल में 

संजा होदे जंगल में 

चिड़ी - चिड़ी कोट पर चढ़कर देख 

कौन सा विरो आया 

चंद्र  विरा आया 

गाड़ी घोड़ा लाया 

गाड़ी में भाभी 

भाभी के माते पालनो 

पालनो में नानी  

नानी  माते टोपी 

टोपी में हीरो 

हीरो गयो मंगल में 

संजा होदे जंगल में ...।

15)  *संजा गीत* 

 मै गोबर  सड़क पे खड़ी 

मुझे बतलादो संजा  गली 

अजी वई है गली अजी वई है गली 

मैं फूल ले के सड़क पे खड़ी 

मुझे बतलादो संजा  गली 

अजी वई है गली अजी वई है गली 

मैं अगरबत्ती ले के सड़क पे खड़ी 

मुझे बतलादो संजा  गली 

अजवई है गली अजी वई है गली 

मैं प्रसाद ले के सड़क पे खड़ी 

मुझे बतलादो संजा  गली 

अजवई है गली अजी वई है गली  ..

16) अतल बीतल  की डोरिया न 

बेतल  की तलवार जी 

कोन्सो वीरो बाग लगावे 

कोनसी बेना सींचे जी 

चाँद सूरज भई वीरो बाग लगावे 

संजा बेना सीचे जी ...।

17)म्हारा आँगन मs गाय ऊबी

वा गाय भल्ली थी भई आंगण पोयटो कर्यो थो

वो पोयटो भल्लो थो भई

गेहूड़ा सुखाया था वो गेहूड़ा भल्ला था भई

घट्टी म धमकाया था वा घट्टी भल्ली थी भई

लाडूला लड़ाया था वो लाडूला भल्ला था भई

पियर पोचाया था वो पियर भल्लो थो भई

चुनर  ओढाई थी वा चुनर भल्ली थी भई

बारा मईना चली थी नs फुरफन्दी मs फटी गई...। 

©copy rightसंकलन सुनीता पंडित

गुरुवार, 3 जून 2021

जव कवाज की "चलो खूब कांदा कुचा".... तो एक बार शायद हंसी छूट न लग या तो टुच्चार पण की बात हुई लग.... पण गंभीरता से सोचा न विचार करा तो कांदा कुचनु न सिर्फ लाक्षणिक गुण छे पण यो सम्पूर्ण लोक जीवन की संस्कृति को संवारक छे । वसो कांदा शब्द की वात करा तो आपणी संस्कृत भाषा मs यो कृष्ण वलय का नाव से छे क्योकि एख आडो कटाय तो 'चक्र 'वलय न ऊबो कटाय तो 'शंख'वलय बणी जाय दुई कृष्ण भगवान का प्रिय तो कवा नर से नारायण दुई को प्रिय या यों कवा न सिर्फ नारायण बल्कि नारायण का प्रिय न की पोषण रक्षा सुरक्षा को सहज सरल व जीवन जीण की जीवन शैली को आधार छे यो पूर्ण आधात्मिक ता से परिपूर्ण छे यो जव दुइ सुखी रोटी का बीच धरायज तो भूखा मिनत कस मनुस की दुई हथेली की थाली ख छत्तीस पकवान न सी सजाई दे ज यो कांदो।दुखियारी का दुःख ख अस्सो पी जायज न घर की वात घर म ज राख ण को माद्दओ राखज जब एन टाइम प कोई बाहेर वालो पूछी ले कई हुयो तो झट सी पुरो को पुरो गुस्सो निकाल दे ज की 'कांदा केतरा खराब धुँवारया डट छे कांटाज तो डोळा न सी पाणी आवाज" बेचारो कांदो सब झेल लेज न घर की वात घर म ज राखी लेज।कान्दो दुःख सुख हारी बीमारी को सगा सी ज्यादा साथी छे। पेट खराब कांदा को रस जराक गर्मी चढ़ी नकोली छुटी कन्द को रस,फोड़ा फुंसी सरी का सूजन म हल्दी कन्दा मरम को काम करज न जव मेमान घर मा होय न मिजवानी म कमी नी हाथ खींचाण होय पड़ोसी का या सी माँगी लावा अस्सो सामाजिकता सी लबरेज छे कांदो....अस्सो नी यो जेतरो भोळो उत्तोज उस्ताद भी छे जव वात की गळ निकालणु होय तो फोटरा निकलना प आई जाय तो निकलतो ज चल्यो जाय लोग कई दे इत्ता कांदा का फोटरा मत निकालो धापी गया। हाँ पड़ोसी धरम तो अस्सो निभावज की पुछोज मत इत्ती वात खुद का बारा म तो खुद पड़ोसी भी हेर राख्यो होयग इत्ती खबर इना कांदा ख राज यो पड़ोसी पंचाट म माहिर छे न अव तो यो मोबाइल वाट्सअप सरका समूह म शामिल हुई न न अंतराष्ट्रीय पदवी प्राप्ति हुई गायोज जसो जी तरह तरह की चटनी कवा 'ज़ूम'होय की 'गूगल मीट 'लबरेज़ बन्द कुच्याज हा वा अपणा गाँव सारखा दग्गड़, उखाळ मुसल नी होता है बाकायदा एप्रिन पेरिन मशीन म विदेशी भाषा की चटनी की संगात कुच्याज गिटिर पिटिर ...न देसी कांदा ख अंगठो बतावज की ररैगो नी तू कोंडी बा अंगठा टेक मख देख ह उ कसो मसीन से कुचाई रयोज देसी मन मसोसी न रई जायज पण यो नी समझ तो की वो का कुचना म माथा प बुढा -आडा सरको हथिली न को आशीर्वाद छे अपणो गाँव की माटी छे बाप दादा न कि थाती धरोहर छे तो हम योज कवा गा अपना देसी कांदा ख हवा देता रवा न बखार दुखार होय की चटनी भाजी कांदा खूब कुचना म शर्म नी रखा बिंदास हुई न कांदा कुचा कसर नई छोड़ा। ....

रविवार, 30 मई 2021

"चलो खूब कांदा कुचा"

भाई न होणी राम राम
बठो  वात विचार करा नs खास वात या कि
जव कवाज की "चलो खूब कांदा कुचा".... तो एक बार शायद हंसी छूट  लग या तो टुच्चार पण की  बात हुई लग.... पण गंभीरता से सोचा न विचार कराव तो कांदा कुचनु न सिर्फ लाक्षणिक गुण छे पण यो सम्पूर्ण लोक जीवन की संस्कृति को संवारक छे । जव  दुइ सुखी रोटी का बीच धरायज तो भूखा  मिनत कस मनुस की दुई हथेली की थाली ख छत्तीस पकवान न सी सजाई दे ज यो कांदो।दुखियारी का दुःख ख अस्सो पी जायज न घर की वात घर म ज राख ण को माद्दओ राखज जब एन टाइम प कोई बाहेर वालो पूछी ले कई हुयो तो झट सी पुरो को पुरो गुस्सो  निकाल दे ज की 'कांदा केतरा  खराब धुँवारया डट छे कांटाज तो डोळा न सी पाणी आवाज"  बेचारो कांदो  सब झेल लेज न घर की वात घर म ज राखी लेज।कान्दो दुःख सुख हारी बीमारी को सगा सी ज्यादा साथी छे।  पेट खराब कांदा को रस जराक   गर्मी चढ़ी नकोली छुटी कन्द को रस,फोड़ा फुंसी  सरी का सूजन म हल्दी कन्दा मरम को काम करज न अस्सो नी यो जेतरो भोळो उत्तोज उस्ताद भी छे जव वात की गळ निकालणु होय तो फोटरा निकलना प आई जाय तो  निकलतो ज चल्यो जाय  लोग कई दे इत्ता कांदा का फोटरा मत निकालो धापी गया। हाँ पड़ोसी धरम तो अस्सो निभावज की पुछोज मत इत्ती  वात खुद का बारा म तो खुद पड़ोसी भी हेर राख्यो होयग इत्ती खबर इना कांदा ख राज यो पड़ोसी पंचाट म माहिर छे न अव तो यो मोबाइल वाट्सअप सरका समूह म शामिल हुई न न अंतराष्ट्रीय पदवी प्राप्ति हुई गायोज जसो जी तरह तरह की चटनी कवा 'ज़ूम'होय की 'गूगल मीट 'लबरेज़ बन्द कुच्याज हा वा अपणा गाँव सारखा दग्गड़, उखाळ मुसल नी होता है बाकायदा एप्रिन पेरिन मशीन म  विदेशी भाषा की चटनी की संगात कुच्याज गिटिर पिटिर ...न देसी कांदा ख अंगठो बतावज की ररैगो नी तू कोंडी बा अंगठा टेक मख देख ह उ कसो मसीन से कुचाई रयोज देसी मन मसोसी न रई जायज पण यो नी समझ तो की वो का कुचना म माथा प  बुढा -आडा  सरको हथिली  न को आशीर्वाद छे अपणो गाँव की माटी छे बाप दादा न कि थाती धरोहर छे तो हम योज कवा गाकि तू अपणा गाँव म छे अपनी मर्जी को मालिक जैसी पूरब की बयती हवा...कोई की हड़क धड़क सी दूर...तो इना सजीला बांका छबीला कांदा ख हवा देता अपना देसी कांदा ख हवा देता रवा न बखार दुखार होय की चटनी भाजी कांदा खूब कुचना म शर्म नी रखा बिंदास हुई न कांदा कुचा कसर नई छोड़ा। .... 
तो अब तम बठो हम चल्या...का जावा भाई लॉक्ड डाउन लगेलो छे। घर म रवा 
राम- राम।

सोमवार, 22 मार्च 2021

विश्व जल दिवस "अमरीत नाव कवाडयो

#WorldWaterDay  #poems #Nimadi #nimadidilect 
 निमाड़ में आज -समूचे  विश्व  की तरह निमाड़  भी आज जल दिवस मना रहा है।
इसी विषय पर कविता-
पाणी रे पाणी थारा रुप छे अनेक,
थारा बिना जिनगी नी, 
अमरीत नाव कवाणयो।
 माटी मs पड्यो ,खेत मs वायो,
भूखा की 
भूख खs असो भगाड्यो।
कुआ म गिरयो,नद्दी म वयो,
 तिस्या की 
तीस खs झट से पियो। 
डोळा मs छुप्यो ,आँसू गिरयो, 
दुखिया की
 पीर खs पल मs हरयो।
मनुस का
 मुंडा दुई बून्द पाणी 
सरग को द्वार खोलड़्यो। 
मिनत मs मिली,
पसीना मs झररयो
 कर्म को रस्तो बतायो।
पाणी रे पाणी थारा रुप छे अनेक,
थारा बिना जिनगी नी, 
अमरीत नाव कवाणयो।©सुनीता