गुरुवार, 3 जून 2021
जव कवाज की "चलो खूब कांदा कुचा".... तो एक बार शायद हंसी छूट न लग या तो टुच्चार पण की बात हुई लग.... पण गंभीरता से सोचा न विचार करा तो कांदा कुचनु न सिर्फ लाक्षणिक गुण छे पण यो सम्पूर्ण लोक जीवन की संस्कृति को संवारक छे । वसो कांदा शब्द की वात करा तो आपणी संस्कृत भाषा मs यो कृष्ण वलय का नाव से छे क्योकि एख आडो कटाय तो 'चक्र 'वलय न ऊबो कटाय तो 'शंख'वलय बणी जाय दुई कृष्ण भगवान का प्रिय तो कवा नर से नारायण दुई को प्रिय या यों कवा न सिर्फ नारायण बल्कि नारायण का प्रिय न की पोषण रक्षा सुरक्षा को सहज सरल व जीवन जीण की जीवन शैली को आधार छे यो पूर्ण आधात्मिक ता से परिपूर्ण छे यो जव दुइ सुखी रोटी का बीच धरायज तो भूखा मिनत कस मनुस की दुई हथेली की थाली ख छत्तीस पकवान न सी सजाई दे ज यो कांदो।दुखियारी का दुःख ख अस्सो पी जायज न घर की वात घर म ज राख ण को माद्दओ राखज जब एन टाइम प कोई बाहेर वालो पूछी ले कई हुयो तो झट सी पुरो को पुरो गुस्सो निकाल दे ज की 'कांदा केतरा खराब धुँवारया डट छे कांटाज तो डोळा न सी पाणी आवाज" बेचारो कांदो सब झेल लेज न घर की वात घर म ज राखी लेज।कान्दो दुःख सुख हारी बीमारी को सगा सी ज्यादा साथी छे। पेट खराब कांदा को रस जराक गर्मी चढ़ी नकोली छुटी कन्द को रस,फोड़ा फुंसी सरी का सूजन म हल्दी कन्दा मरम को काम करज न जव मेमान घर मा होय न मिजवानी म कमी नी हाथ खींचाण होय पड़ोसी का या सी माँगी लावा अस्सो सामाजिकता सी लबरेज छे कांदो....अस्सो नी यो जेतरो भोळो उत्तोज उस्ताद भी छे जव वात की गळ निकालणु होय तो फोटरा निकलना प आई जाय तो निकलतो ज चल्यो जाय लोग कई दे इत्ता कांदा का फोटरा मत निकालो धापी गया। हाँ पड़ोसी धरम तो अस्सो निभावज की पुछोज मत इत्ती वात खुद का बारा म तो खुद पड़ोसी भी हेर राख्यो होयग इत्ती खबर इना कांदा ख राज यो पड़ोसी पंचाट म माहिर छे न अव तो यो मोबाइल वाट्सअप सरका समूह म शामिल हुई न न अंतराष्ट्रीय पदवी प्राप्ति हुई गायोज जसो जी तरह तरह की चटनी कवा 'ज़ूम'होय की 'गूगल मीट 'लबरेज़ बन्द कुच्याज हा वा अपणा गाँव सारखा दग्गड़, उखाळ मुसल नी होता है बाकायदा एप्रिन पेरिन मशीन म विदेशी भाषा की चटनी की संगात कुच्याज गिटिर पिटिर ...न देसी कांदा ख अंगठो बतावज की ररैगो नी तू कोंडी बा अंगठा टेक मख देख ह उ कसो मसीन से कुचाई रयोज देसी मन मसोसी न रई जायज पण यो नी समझ तो की वो का कुचना म माथा प बुढा -आडा सरको हथिली न को आशीर्वाद छे अपणो गाँव की माटी छे बाप दादा न कि थाती धरोहर छे तो हम योज कवा गा अपना देसी कांदा ख हवा देता रवा न बखार दुखार होय की चटनी भाजी कांदा खूब कुचना म शर्म नी रखा बिंदास हुई न कांदा कुचा कसर नई छोड़ा। ....
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