-"डेडर माता पाणी द"
निमाड़ में जेष्ठ मेंम वअमावस्या मनाई जा रही है।सुबह सबेरे बच्चे सिर पर नीम के पत्तो की आम के पत्तो की पलाश के पत्तो की जो भी सहज रूप से मिल जाए उनकी डालियो को सर पर रख कर घर घर जा कर अच्छी बारिश होने की मनुहार करते है। और बदले उन्हें मिलता है अनाज-धान जिसे 'भाता' देना कहते है।
इसमें प्रार्थना का तरीका भी बड़ा मनोरंजक होता है जिसमे गॉवो में बच्चों के समूह में से एक बच्चा अपने सिर को वक्षो की टहनियों से ढँक लेता है फिर समूह में गीत गाये जाते है गीतों का मूल आधार पानी माँगना होता है जिस घर में ये होता वे सबसे पहले उस टहनियों को लपेटे बच्चे के सर पर थोडा पानी डाल कर अच्छी बारिश होने की बाल मनुहार में अपनी शुभकामनाएं समाहित कर अनाज देते है इस प्रकार गॉव के प्रत्येक घर से बच्चों को मिलता है देर सारा अनाज ,समूह की शक्ति का पाठ ........
नतमस्तक है भारतीय परम्पराओ के ऐसे रीति रिवाज जिन्हें आधुनिकता लील गई...या मूलस्वरूप विकृत हो गए..जहाँ समाज का प्रत्येक जन एक सूत्र में बंध जाता है इन मासूम बच्चों की कोमल भावनाओ के साथ क्या बड़ा क्या बूढ़ा...देने वाला भी उतना ही उपकृत धन्य उतना ही पाने वाला भी...
जहाँ वक्षो की सुरक्षा हो या पानी का जीवन में महत्व हो सामूहिक प्रार्थना भाव हो या समूह की शक्ति सामर्थ्य हो जाने कितनी सीख छुपी है इस छोटे से उपक्रम में ......जब सूरज भी जयेष्ट की उच्चत्तम रश्मियों से उद्वेलित हो जाता है जीवन की विषमताओं भरी काली अमावस्या में चाँद भी ग्रसित हो जाता है तब जीवन का संघर्ष और वृक्षो का प्रकृतिक महत्व सहजता से समझा जा सकता है जिसमे मृत्यु से परे असीम जीवनी शक्ति प्रदान करने की क्षमता है फिर वो सत्यवान के प्राण ही क्यों न हो ,इसिलए आज के दिन को "सत्यवान सावित्री" का वरद हस्त भी प्राप्त है।
आज जब हम विश्व पर्यावरण दिवस मना रहे है तो हमें उन बिसरती परम्पराओ को याद करना होगा जिसमें समाहित है प्रकृति के साथ सामन्जस्य बना कर समाज के सभी वर्गों का विकास चाहे वे किसी भी जाति व्यसाय से जुड़े हो, जीव-जंतु हो, पेड़ पौधे हो,खेत-खलियान ,नदीनाले ,पहाड़ पर्वत हो पर वो सभी प्रकृति से आबद्ध है जिन पर हमारा भविष्य जुड़ा हुआ है और हमारा भविष्य है ये बच्चे जो अपने गीतों में वर्षाजल 'संवाहिका मेढ़क' का आव्हान करते हुए कहते है-
"डेडर माता पाणी द पाणी द गुड़ धानी द"....
बईण, अ-नामिका ! आज आपकी पोस्ट देखने को मिली, निमाड़ की परंपरा पर आलेख प्रस्तुत करने के लिए साधुवाद.
जवाब देंहटाएंविनम्रता से निवेदन है कि, सही नाम डोड गळी न होकर डोड बोळई (मेंडकों की बोली वाली) अमावस्या है . इस सामाजिक उत्सव पर बाल-खेल में दिया जाने वाला नेग, 'भाता' नहीं, बल्कि 'दत्तो' कहलाता है. यह निमाड़ी-स्वांग, 'दत्तो-मांगणो' कहलाता हैं . गीत इस प्रकार चलते हैं,..... दत्तो दs माय दत्तो दs, कोठी मs नी होय तो सैणॉ फोड़ी दs.... यह त्यौहार वर्षा-पूर्व, वर्षा की कामना का है , जबकि डेडर माता पाणी दs, पाणी को आयो सेरो... वर्षा की पहली फुहार के समय का गीत होता है.
आपका प्रयास स्तुत्य है. कृपया क्रम जारी रखें.----- मणिमोहन
बईण, अ-नामिका ! आज आपकी पोस्ट देखने को मिली, निमाड़ की परंपरा पर आलेख प्रस्तुत करने के लिए साधुवाद.
जवाब देंहटाएंविनम्रता से निवेदन है कि, सही नाम डोड गळी न होकर डोड बोळई (मेंडकों की बोली वाली) अमावस्या है . इस सामाजिक उत्सव पर बाल-खेल में दिया जाने वाला नेग, 'भाता' नहीं, बल्कि 'दत्तो' कहलाता है. यह निमाड़ी-स्वांग, 'दत्तो-मांगणो' कहलाता हैं . गीत इस प्रकार चलते हैं,..... दत्तो दs माय दत्तो दs, कोठी मs नी होय तो सैणॉ फोड़ी दs.... यह त्यौहार वर्षा-पूर्व, वर्षा की कामना का है , जबकि डेडर माता पाणी दs, पाणी को आयो सेरो... वर्षा की पहली फुहार के समय का गीत होता है.
आपका प्रयास स्तुत्य है. कृपया क्रम जारी रखें.----- मणिमोहन