भगोरिया पर्व
भारत एक कृषी प्रधान देश है महात्मा गांधी ने कहा था भारत गांवों मे बसता है जिसकी अधिकतर आबादी गावों मे निवास करती है और अपने खेतीबाड़ी के कार्यो को सम्पन्न करती है और अपना जीवन कठिनता से जीता है इन विषम परिस्थितियो मे कभी कभी ऐसा होता है कि संघर्षो मे जीवन निराश और हतोत्साहित होने लगता है इसी निराशा के जीवन को उमंग और उत्साह के लिए लोक पर्वो का महत्व और भी बढ़ जाता है उमंग से भरा ऐसा ही लोकपर्व है भगोरिया ।
जब खेतो की फसल कट कर खलियानों मे आ जाती है नई फसलों का आगमन हो जाता है रबी खरीब दोनों ही फसलों का कृषि सत्र पूर्ण हो जाता है पूरा क्षेत्र पलाश के फूलो की डालियो से लद जाता है महुआ की मदकता भी वातावरण मे घुलने लगती है फागुनी बयार चलती है तब होलिका दहन से ठीक एक सप्ताह पूर्व आदिवासी अंचल मे निवास करने वाली वनवासी समाजो दवारा इस पर्व को मनाया जाता है हमारे प्रदेश मे आदिवासी बहुल अंचल धार झाबुआ बड़वानी खरगोन आलीराजपुर आदि जिलो के हाट बाज़ारो मे इस पर्व को बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है ।
पर्व भगोरिया के इतिहास के बारे मे ठीक ठीक तो कुछ कहा नहीं जा सकता है पर यूं कहा जाता है कि भगोरिया राजा भोज के समय मे लगाने वाले हाट को कहा जाता था इस समय दो भील राजाओ ’कासुमार’ और ‘बालून’ ने अपनी राजधानी भगोय मे विशाल मेले का आयोजन किया धीरे धीरे आसपास के भील राजाओ ने भी इसका अनुसरण किया और इसी तरह प्रचलन होने पर इसे भगोरिया कहना शुरू हो गया । एक मान्यता या भी है कि चूंकि इन मेले उत्सवो मे आदिवासी युवक युवतीया अपनी मर्जी से भाग कर शादी करते है इसलिए इस पर्व को भगोरिया कहा जाता है ।
कहते है आरंभ मे भगोरिया पुरुषार्थ प्राधान हुआ करते थे जिस तरह शादी विवाह मे दुल्हा पुरुषार्थ का प्रतीक तलवार लेकर जाते थे उसी तरह तीर-तलवार आदि शस्त्र भगोरिया के अनिवार्य अंग माने जाते थे ।
मित्रो किसी समय मे होलिका दहन के एक सप्ताह पूर्व नायक राजाओ के सैनिक रूप मे तैनात आदिवासी अपनी पसंद को अधिकार पूर्वक व राजाश्रय से प्राप्त कर लेते थे तब उसका स्वरूप लगभग स्व्यंबर जैसा था और साहस वीरता पुरुषार्थ उसकी मुख्य पहचान हुआ करते थे । समय के साथ साथ भगोरिया पर्व मे भी परिवर्तन हुए और कालांतर मे ‘पुरुषार्थ पर्व का स्वरूप ‘प्रणय पर्व मे बदल गया ।
भगोरिया पर्व आदिवासी जीवन समाजो मे महिला कि महत्ता को रेखांकित करता है यह ये वो दौर था जब आदिवासी समाजो मे वधू मूल्य की व्यवस्था परंपरा स्थापित हो चुकी थी जो व्यक्ति वधू का अधिक मूल्य देता था वह दुल्हन प्राप्त कर लेता था पर कमजोर माली हालत वाले युवको को निराशा होती थी ऐसे युवक युवतियो के लिए भगोरिया पर्व मनपसंद उत्सव बन कर आया ।
भगोरिया लगभग होली का ही एक रूप है जिसमे आदिवासी आंचलिक क्षेत्रो मे गावों गावों मे एक निश्चित दिन हाट बाज़ार मेले झूले सजते है और फागुन अपने पूरे रंग बिखेरता है ।
भगोरिया हाट बाज़ारो मे युवक युवतिया आकर्षक रूप से साज धज कर अपने जीवन साथी की खोज मे आते है इन समाजो मे आपसी सहमति का तरिका भी बड़ा निराला है सबसे पहले लड़का लड़की को पान खाने को देता है यदि लड़की पान को ले ले तो या लड़की की सहमति समझी जाती है और दोनों भाग कर विवाह कर लेते है ।
एक अन्य प्रथा मे यदि लड़का लड़की के गाल पर गुलाबी रंग लगा दे तो और जवाब मे लड़की भी लड़के को गुलाबी रंग लगा दे तो ये रिश्ता तय माना जाता है।
भगोरिया मेले मे जहां बाज़ारो मे रौनक होती है झूले-मेले दुकाने सजती है व्ही आदिवासी युवक युवतियो का परिधान भी सुहावना होता है पुरुष सिर पर लाल ,पीले, नीले, आदि रंगो के साफे पगड़ी बांधते है कानो मे चाँदी की बालिया, हाथो मे कड़े कलाई मे कंदोरे पहनते है आंखो पर काला चश्मा लगाते है और हाथो मे तीर कामटी तलवार थामे होते है महिलाए रंग बिरगी भिलोदी लहगा ओढ़नी पहने सिर से पाव तक चाँदी के गहनों से सजी होती है
माँदल की थाप दूर दूर तक बाज़ारो मे गूँजती है मांदल और थाली की संगत, बासुरी की मदुर स्वर लहरी भगोरिया के सर्व प्रिय वाद्य है भील युवक युवतियो द्वारा मान्दल थाली की संगत कर बजाई जाती है इस धुन पर युवक युवती मद मस्त होकर धिरकते है और तीर तलव्वर लेकर विशेष ध्वनि उच्चारित करते है जिसे ग्रामीण जानो दवारा ‘कुर्राती’ भरना कहते है और कुररते भरते हुए नाच गा कर मनाते है मेले मे गुलगुले जलेबी, शक्कर के हार कंगन , गुड की मीठी नमकीन सेव भजियो के पकवान इन मेलो की शान होते है मेलो मे लकड़ी के हड़म्बा के झूले से लेकर बिजली से चलने वाले झूलो का समावेश भी हुआ है ।
भगोरिया के हाट बाज़ारो मे नव युवक युवतियाअपने लिए जिंदगी का एक नया रंग ढूंढते नज़र आते है वे संगीत की धुन पर, मांदल की थाप पर धिरकते हुए महुआ की मादकता मे सराबोर हो अपने सपनों को सजीव करते नज़र आते है
भगोरिया हाट बाज़ारो भील समाजो की जीवन रेखा है साल भर मेहनत मजदूरी कर बढ़े जतन से धन इक्कठा करते है और भगोरिया पर्व पर जीवन उपयोगी वस्तुए क्रय करते है ।
आधुनिक समय मे भगोरिया हाटो मे परंपरा की जगह आधुनिकता हावी होती दिखाई देती गई है चाँदी के गहनों रेडियो ,कपड़ो के साथ-साथ मोटर साइकिल मोबाइल भी चमकते जगह जगह दिखने लगे है ।
महुए की मादकता के साथ ही छाछ नींबू पानी व आधुनि ढन्डे पेय पदार्थो ने ले ली है ।
आधुनिक समय मे शिक्षित पढ़े-लिखे युवक युवतीय इस तरह के हाट मलो से परहेज करते है इसलिए अब इन मेलो मे शादियो की संख्या मे लगातार कमी आ रही है पर इस आधुनिक समाज मे अब भी आदिववासी लोक संगीत- नृत्य अपनी प्रासंगिकता बनाए हुए है ।
आज भी न सिर्फ आदिवासी समाज बल्कि अन्य समाजो मे भी ये पर्व आकर्षण का केंद्र बने हुए है । देश विदेशो से कई पर्यटक इस मेले का आनंद लेने विशेष रूप से आते है और मेले का आनंद लेते है शासन प्रशासन के दवारा मेलो मे सुरक्षा व्यवस्था की जाती है ताकि मेले सुचारु रूप से चल सके वैश्विक बाजरिकरण के दौर मे हाट बाज़ारो का युक्तिपूर्ण उपयोग कर हस्त शिल्प वनवासी औषधीयकला को विश्व बाज़ार मे उतारा जा सकता है ताकि समूचा विश्व प्रकृतिक जैविक जीवन कि महत्ता से परिचित हो इस अमूल्य निधि को सहेज सके बाज़ारो का परीपूर्ण विकास कर उपेक्षित वनवासी जीवन को मुख्य धारा मे समाहित किया जा सके ।
nimar पर 4:44 am
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