कर्म युद्ध ये नही रुकेगा
बस!हमको घर मे रुकना है।
इस दौर का है ऐसा रोना,
हर कोना कोना कोरोना है।
बाजारों की रौनक टूटी,
चौपालों पर घोर अंधेरा है।
भक्तो की आवाजाही रुकी,
मस्जिद की अज़ान अधूरी है।
पिया मिलन की आस में गौरी,
अखियों का काजल सुना है।
अर्थी भी कांधे को तरसे,
क्यों?टूटा आज घरौंदा है।
वक्त मांगता स्वयं चुनौती,
हमको संयम साधक बनना है।
चौदह दिन की बात नही,
हमको हरपल ध्यान में रखना है।
कर्म युद्ध ये नही रुकेगा,
बस!हमको घर मे रुकना है।
(सुनीता पंडित)
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