निमाड़ में संजा पर्व _
निमाड़ में छाबड़ी (संजा फूली) का लोक पर्व अनंत चतुर्दशी के दूसरे दिन से याने अश्विन माह की पूर्णिमा तिथि से सर्वपितृ अमावस्या तक निमाड़ की किशोरी बालिकाओ द्वारा इस त्यौहार को मनाया जाता है।
संजा भित्ति चित्र 'मांडना' और लोक गीतों का संगम है जिसमे बालिकाए दीवाल पर या पट्टे पर गोबर से हरदिन एक निश्चित आकृति बनाती है संध्या के समय गॉव की सभी सखी सहेलियां एकठ्ठा होकर घर घर जाकर गीत गाती है और आरती व् प्रसाद बाँटती है, प्रसाद बाँटने से पहले बताना पड़ता है कि आज प्रसाद में क्या है जिसे 'ताड़ना' कहते है ताड़ना के बाद भोग भी गीत गाकर लगाया जाता है फिर प्रसाद का वितरण होता है ।
मांडने की आकृतियों में घुघरो नगाड़ा, पंखा, केले का झाड़, चौपड़ दीवाली झारी, बाण्या की दुकान, बाजूर, किल्लाकोट होता है। 'संजा' क्रम में पहले दिन चाँद तारा, पाँच पाचे या पूनम पाटला, दूसरे दिन इन्हें मिटाकर बिजौर, तीसरे दिन घेवर, चौथे दिन चौपड़ और पंचमी को 'पाँच कुँवारे' बनाए जाते हैं। लोक कहावत के मुताबिक जन्म से छठे दिन विधाता किस्मत का लेखा लिखते हैं, जिसका प्रतीक है छबड़ी। सातवें दिन सात्या (स्वस्तिक) या आसमान के सितारों में सप्तऋषि, आठवे दिन 'अठफूल', नवें दिन डोकरा-डोकरी और दसवें दिन वंदनवार बाँधते हैं। ग्यारहवें दिन केले का पेड़ तो बारहवें दिन लड़ता झड़ता मोर-मोरनी या जलेबी की जोड़ माँडती है। तेरहवें दिन शुरू होता है किलाकोट, जिसमें 12 दिन बनाई गई आकृतियों के साथ नई आकृतियों का भी समावेश होता है।
यही क्रम सोलह दिनों तक चलता हैँ पहले दिन की बनी आकृति की जगह नयी आकृति बनाइ जाती है सोलहवें दिन सर्व पित्र अमावस्या को सभी सुखाई आकृतियो को टोकनियो में इकट्ठा कर गाँव के जलाशय में विसर्जन कर दिया जाता है ककड़ी और हलवे का प्रसाद बाँटती है वापस लौटते समय भी सभी सहेलिया खाली टोकनियो से खेल खेलती है व् हारी खिलाड़ी को कहावत में 'हाड़या राव'जी(काला कौआ) उसके भावी पति के नाम से चिढ़ाती है और इस तरह संजा के लोक पर्व की समाप्ति हो जाती है।
संजा गीत इस प्रकार है_
१) संजा गीत -संजा तू थारा घर जा,
थारी माय मारेगी की कुटेगी,
चाँद गयो गुजरात
की हथनी का बड़ा बड़ा दात,
की थारा पोर्या पारी डरपे ला की डर पेला......
संजा तू थारा घर जा,
थारी माय मारेगी की कुटेगी......
२) संजा का सासरs जावा गाs की खाटो रोटो खावागा s
संजा की सासु सोकेली रस्ते चलते मारेगी
अस्सी कस्सी मारे दारी की चार गुलाटी खाएगी ..........
3)संजा बाई का लाड़ा जी लुगड़ो लाया जाड़ाजी
अस्सा कसा लाया दारी का लावता गोट किनारी का
लाया था पर लाया था रास्तो भूली आया था.....
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