हkFkh व्रत
भारत वर्ष में अनेक त्यौहार आते है .भारत की
महिलाए कई व्रत भी करती है जैसे हरतालिका तीज अबोला हल्छठ] वज
बारस] d`".k जन्म अष्टमी ] हkFkh
व्रत त्यौहार करती है .उनमे से एक हkFkh
व्रत भी है ये व्रत कुमारी लडकिया
सौभाग्यवती भी करती है .ये पञ्च वर्ष तक किया
जाता है . ये व्रत हिन्दू धर्म में ब्रहीम]
बनिया आदि करते है . यह व्रत पञ्च दिनों तक बिना नमक के
भोजन का किया जाता है ६वे दिन गवर्नि को भोजन कराया जाता है. इस व्रत का अभिप्राय
ये था की लडकियों में बचपन से ही यह शि{kk दी जाती थी की अगर ससुराल में खाना देर से बने
या जल्दी बने उसे परिवार में आदत सिखाई
जाती थी ताकि किसी प्रकार से उसे तकलीफ न हो.
यह व्रत देव सोवनी
ग्यारस से किया जाता है.उस दिन ग्यारस को फलाहार कर व्रत की पूजन का हkFkh
बनाने के लिए काली माटी में थोडा सा रुई डाल कर गला दिया जाता है.लकड़ी के बाजूत पर
चार हkFkh के पहिये बना कर पहियों पर सिंगासन बनाये उस पर
शंकर पार्वती गोरा माता,
दुध धी के कटोरे बना कर स्थापित करे हkFkh
का सिर ,थड,व् पूंछ भी बनाये .दो कोडियो की आँखे बनाये हkFkh के आसपास माटी डाल में
थोडा सा रुई डाल कर गला दिया जाता है.लकड़ी के बाजूत पर चार हkFkh
के पहिये बना कर पहियों पर सिंगासन बनाये
उस पर शंकर पार्वती गोरा माता,
दुध धी के कटोरे बना कर स्थापित करे हkFkh
का सिर ,थड,व्
पूंछ भी बनाये .दो कोडियो की आँखे बनाये
हठी के आसपास माटी डाल के ज्वार के दाने
बोये ताकि पाँच दिनों में अच्छे जवारे उग
आये भोजन में जवार का आटा हाथ की पीसी घट्टी का होना चाहिए .
बारस के दिन से यह
व्रत चालू हा जाता है. में थोडा सा रुई डाल कर गला दिया जाता है.लकड़ी के बाजूत पर
चार हkFkh के पहिये बना कर पहियों पर सिंगासन बनाये उस पर
शंकर पार्वती गोरा माता,
दुध धी के कटोरे बना कर स्थापित करे हkFkh का सिर थड ,व् पूंछ भी बनाये
.दो कोडियो की आँखे बनाये हठी के आसपास
माटी डाल के ज्वार के दाने बोये ताकि पाँच
दिनों में अच्छे जवारे उग आये भोजन में
जवार का आटा हाथ की पीसी घट्टी का होना चाहिए .
बारस के दिन से यह
व्रत चालू हा जाता है.ग्यारस के दिन दूर्वा लाकर २१-२१ की पाँच जुडी बनाये पीले
कनेर का फुल ,आरती बत्ती कपूर दुथ दही शहद सुपारी आदि पूजा की
सामग्री रख ले .
यह व्रत ११ के दीन
व्रत से शुरू हो जाता है बारस के दिन सिर धोकर स्नान कर के नए कपड़े- गहने पहन कर
तेयार होकर पूजा करती है .पूजन के लिये पहले गोबर से लिप जाता है रंगोली
बनाते है उस पर माटी से बने gkFkh को स्थापित किया
जाता है सभी व्रती बहने gkFkh के आसपास गोल घेरे
में बेत जाती है gkFkh की प्राण प्रतिष्ठा
की जाती है .पूजन करने के बाद बहने साड़ी के पल्ले से २१-२१- जोड़ी की दूर्वा लेकरकी
दूर्वा लेकर gkFkh को चढाती
है फीर दो २१-२१- की जोड़ी की दूर्वा साड़ी के
पल्ले में लेकर लोटे में दुध दही पानी
डालकर पल्लू से gkFkh को अर्घ देती है और ये गीत गाती जाती है गीत के
बोल इस प्रकार है –
आसट बासट मोती नो
हार ,जिन दियो अय्वात ...
खंड्यो बन्द्यो
जान्जो ,आस पुराव्जो
वेळ वदाढजो,कोरो कोपल एवड़ो .पईलो कडियर फुल ...
हरी ना आरोग देवता
निर्मल होय सो नीर ..
निर्मल माय मम्साल
निर्मल गोरी नो वैसणु....
इस प्रकार कनेर के
पाँच फूलो को चडाते पला दूसरा तीसरा चौथा पाचवा
कनेर फुल गाते हुए अर्घ दिया जाता है . आखिर में पल्ले की दूर्वा व् फुल को हाथी पर चड़ा दे हाथी की पूजा कर आरती
करे आरती के बोल इसप्रकार है -
उठो महादेव जी दातुन
करो
झारी छे गंगा गवरा हाथ ,सदा
शिव की आरती ....
आरती म भर्यो रे
भंडार तेइतीस करोड़ देवता
उठो महादेव जी
नहावन करो ...
चर्वो छे गंगा
गवरा हाथ सदा शिव की आरती ....
आरती म भर्यो रे
भंडार तेइतीस करोड़ देवता
उठो महादेव जी
भोजन करो
थाल छे गंगा गवरा हाथ सदा शिव की आरती .
उठो महादेव जी
मुखवास करो
बेडुला छे गंगा
गवरा हाथ सदा शिव की आरती .
उठो महादेव जी चौसर
खेलो
बkजी
छे गंगा गावर हाथ सदा शिव की आरती .
आरती म भर्यो रे
भंडार तेइतीस करोड़ देवता......
आरती के पश्चात् सभी बहिने हाथ में चवल लेकर हाथी की प्रदक्षिणा
करेव् गाती जाये -गीत के बोल इस प्रकार है -
परभात्या पर दख णा
दी न सिंगासा ण जाई बेईस्या जी ....
निरम ण नीर
अंगोल ण करी न राइ वर जीमा ण
या जी .....
परभात्या पर दख णा
दी न सिंगासा ण जाई बेईस्या जी ....
निरम ल नीर
अंगोल करी न राइ वर जीमा ड या जी .....
रमजो रे चरणामृत मय
मूल नारद सु कइये वात....
ब्रह्मा
जी गाव से आविया लाया हर जी नु नाम ...
हर जी नु नाम छे
वाल्लाय्यो पार्वती धर जे रे मुट.....
जेतरी ते मुट चौखा भरी उतरा पार्वती न पुत्र
छोटी कटोरी में
कुमकुम घोल कर आपस में तिलक किया जाता है.दीवाल पर रोज कुमकुम से स्वस्तिक और पाँच
बिंदी लगावे .यही क्रम पांचो दिनों तक चलता है .ज्वार का आटा घट्टी का पिसा हुआ ही
भोजन घी में पकाया हुआ खाया जाता है
६ वे दिन दाल चावल
व् पूर्ण भोजन बनाकर पहले गवर्नी को जिमाया जाता है पश्चात स्वयं किया जाता है
रात्रि को जागरण किया जाता है .रात्रि के
समय निम्न सामान एकत्रित करे -२५०ग्रा घी ,१बदाम ,१इलायची ,लॉन्ग,
१ सिंगाड़ा १सुपरि ,पीले फुल ,१मितेर
नाडा लेते है इन सब चीजो इ माला बनाई जाती है खोपरे की वाटकि लटके जाती है हाथी के
सामने बॉस की चिपली बाँध कर उसपर ये मालाए चढाई जाती है .ये व्रत पांच सालो तक
किया जाता है पांचवे वर्ष खोपरे की वाटकि की जगह खोपरे का गोल बाँधा जाता है.
.रात्रि के समय अखंड दीपक जलाए जाते है चार प्रहर
की चार बार पूजा की जाती है .दीवाल पर स्वस्तिक और बिंदी लगाईं जाती है .
प्रात.चतुर्थी को हाथी को बगीचे या नदी में विसर्जित कर दिया जाता है .तट पश्चात्
खपरे की वाटकि माला गवर्नी को दे दी जाती है .यह व्रत सौभाग्य के लिए किया जाता है
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